एक व्यक्ति ने एकनाथ जी से पूछा, "आपका जीवन निष्पाप है! आप कभी किसी पर क्रोध नहीं करते. आपका किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं होता. ऐसे कैसे रह लेते है आप?"
एकनाथ जी ने उत्तर दिया, "मेरी बात छोड़ो. तुम्हारे सम्बन्ध में मुझे एक बात पता चली है. आज से सात दिन के भीतर तुम्हारी मृत्यु आ जाएगी."
एकनाथ जी बहुत बड़े संत थे, इसलिए उनकी कही गयी बात को झूठ कौन मानता! सिर्फ सात दिवस में मृत्यु! वह व्यक्ति बहुत जल्दी-जल्दी घर गया. कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंतिम समय में सबकुछ पूरा कर लेने की बातें कर रहा था. मृत्यु के डर से वह बीमार पड़ गया. छह दिन व्यतीत हो गए.
सातवें दिन एकनाथजी स्वयं उसके घर पहुंचे और उस व्यक्ति से उसका हाल-चाल पूछने लगे. उसने कहा, "बस अब जाने की तैयारी है!"
एकनाथजी ने पूछा, "इन छह दिनों में तुमने कितने पाप किये? पाप के कितने विचार तुम्हारे मन में आए?"
वह व्यक्ति बोला, "स्वामीजी, अब पाप का विचार करने की फुरसत ही कहां. मृत्यु मेरे समक्ष खड़ी है."
एकनाथजी ने कहा, "घबराओं नहीं, तुम्हारी मृत्यु अभी नहीं आएगी. हाँ, तुम्हें इस बात का का उत्तर अब अवश्य मिल गया होगा कि मेरा जीवन निष्पाप क्यों है."
कथा-मर्म : जीवन की सच्चाई और क्षणभंगुरता का भान होने पर पाप और बुरे कर्म नहीं होते.