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"महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर" पुस्तक के बारे में | About the Book "Mahattvapurna Prashnottar"

इस पुस्तक का नाम है : महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक हैं : श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | पुस्तक की भाषा है : हिन्दी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का आकार लगभग 17 MB है | इस पुस्तक में कुल 306 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे सरलतापूर्वक डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Mahattvapurna Prashnottar | Author/Editor of this book is : Shri Hanuman Prasad Poddar | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | Language of the book is : Hindi | PDF file of this book is of size 17 MB approximately. This book has a total of 306 pages. Download link of the book "Mahattvapurna Prashnottar" has been given further on this page from where you can easily download it.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री हनुमानप्रसाद पोद्दारधार्मिक, भक्ति17 MB306

 पुस्तक से उद्धृत :

प्रस्तुत संग्रह में कई नवीन विषयों का समावेश हुआ है, जिससे पुस्तक की उपादेयता बढ़ गयी है। तात्त्विक विषयों के साथ-साथ साधना के मार्गमें आनेवाले अनेक व्यावहारिक प्रश्नों का इनमें बड़े ही मार्मिक एवं सुन्दर ढंग से समाधान किया गया है। साधना में कौन-कौन-सी बातें सहायक हैं तथा कौन - सी बाधक हैं, इसे बड़ी विशद रीति से समझाया गया है। साथ ही वर्तमान राजनीति और सुधारवाद के दोषों की यथार्थ समीक्षा करते हुए दुराचार - भ्रष्टाचार, जनसंख्या की वृद्धि तथा अन्न की कमी को दूर करने के उपायों पर बड़ी ही दूरदर्शिता के साथ विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त विवाह विच्छेद आदि धर्मशास्त्रविरोधी सामाजिक प्रश्नों तथा नारी- जातिकी कतिपय समस्याओं पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

 

जीव में अल्पशक्ति है, तो कहीं पूर्ण या सर्वशक्ति भी होगी ही। जहाँ होगी, वही सर्वशक्तिमान् ईश्वर है। इसी प्रकार पूर्ण ज्ञान, पूर्ण आनन्द तथा पूर्ण विद्या भण्डार ईश्वर का होना निश्चित है। नदी की सीमित जलधारा अक्षय और अनन्त जल के भण्डार समुद्र की ओर अग्रसर होती है। इसी प्रकार सीमित ज्ञान, शक्ति और विद्यावाला जीव असीम आनन्द के सागर परमात्मा में मिलकर पूर्णतम होनेके लिये सदा यत्नशील रहता है। यह प्रयत्न ही उसकी साधना है।

 

जहाँ मुक्तियों का भी तिरस्कार हो जाता है, ऐसी सेवाका आदर्श हैं- गोपियाँ 'यथा व्रजगोपिकानाम्' (नारदभक्तिसूत्र २१ ) । उनका सारा जीवन ही सेवामय है। उनका चलना-फिरना, सोना-जागना, उठना-बैठना, खाना-पीना, वस्त्राभूषण धारण करना आदि सब कुछ श्रीकृष्णके ही लिये है। वे श्रीकृष्णको सुख पहुँचाकर उन्हें आनन्दित देखकर ही सुखी होती हैं।

 

(उपर्युक्त अंश मशीनी टाइपिंग है जिसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का भाग न माना जाये.)


पुस्तक डाउनलोड लिंक :

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