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मन क्या है हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mann Kya Hai Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मन क्या है | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक हैं : जे. कृष्णमूर्ति | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : राजपाल | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 66 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मन क्या है" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Mann Kya Hai | Author/Editor of this book is : J. Krishnamurthy | This book is published by : Rajpal | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 66 pages. Download link of the book "Mann Kya Hai" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
जे. कृष्णमूर्तिप्रेरक, मनोविज्ञान1 MB66



पुस्तक से : 

मन क्या है? मौजूदा चेतना से परे क्या विद्यमान है ? इस पर हमने कभी प्रश्नों का सामना नहीं किया है। हम उस विपुल ऊर्जाकी थाह पाने में कभी समर्थ नहीं हुए हैं, जो इस मन में मौजूद है। मन से यहाँ हमारा आशय केवल मस्तिष्ककी क्षमता, कार्यप्रणाली, उसका क्रियाकलाप ही नहीं है, बल्कि आपकी भावनाएँ, इंद्रियगत प्रतिक्रियाएँ, स्नेह, तमाम मानव-सुलभ प्रत्युत्तर तथा प्रतिक्रियाएँ सीखने की भूलने की और रिकॉर्ड करने, सहेजने की मस्तिष्क की क्षमता, और फिर जो इसने जानकारी के तौर पर सीखा है, उसके मुताबिक कुशलतापूर्वक या अकुशलता से क्रियाशील होने की क्षमता - मन से हमारा आशय यह सभीकुछ है।

 

हम लोग परिकल्पनाओं, विश्वासों, रूढ़ियों और उस तरह की तमाम निरर्थकताओं में नहीं उलझ रहे वक्ता के हिसाब से, इस सब में तर्क- विवेक का कोई आधार नहीं हुआ करता । हम लोग साथ-साथ इस समाज पर गौर करने जा रहे हैं जिसमें हम रहते हैं, और इस पर भी कि हम इस सन्दर्भ में करें तो क्या करें? इसलिए वक्ता इसके बारे में बात कर रहा है, आपके बारे में बात कर रहा है, वह किसी और मसले पर बात नहीं कर रहा।

 

जानते हैं? - सुनना एक महान कला है। यह उन महान कलाओं में से एक है जिन्हें हमने अपने जीवन में विकसित नहीं किया है : पूरी तरह से किसी को सुनना । जब आप किसी को पूरी तरह से सुनते हैं- जैसा कि, मुझे उम्मीद है आप इस वक्त कर रहे हैं - तब आप अपनेआप को भी सुन रहे होते हैं, आप सुन रहे होते हैं अपनी खुद की समस्याओं को, अनिश्चितताओं को, अपनी दुर्दशा, अपनी भ्रम-भ्रान्ति, सुरक्षा की अपनी चाह को, अधिकाधिक यांत्रिक होते जा रहे इस मन के सिलसिलेवार पतन को।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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