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Meera Sudha Sindhu Hindi Book PDF

उपनिषदों के चौदह रत्न हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Meera Sudha Sindhu Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मीरा सुधा सिन्धु | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक हैं : स्वामी आनन्द स्वरूप | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री मीरा प्रकाशन समिति, भीलवाड़ा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 66 MB है | इस पुस्तक में कुल 1070 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मीरा सुधा सिन्धु" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Meera Sudha Sindhu | Author/Editor of this book is : Swami Anand Swaroop | This book is published by : Sri Meera Prakashan Samiti, Rajasthan | PDF file of this book is of size 66 MB approximately. This book has a total of 1070 pages. Download link of the book "Meera Sudha Sindhu" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी आनंद स्वरूपभक्ति, धर्म66 MB1070



पुस्तक से : 

जिनके कर कमल वंशी से शोभायमान हैं, नूतन नील जलधर के समान जिनके श्रीअंग की कान्ति है, जिन्होंने पीताम्बर को धारण किया है, जिनके अधरोष्ठ बिम्बफल तुल्य अरुण आभा लिये हुए हैं और मुखमण्डल पूर्णेन्दु चित्र के सदृश सुन्दर शोभायमान है, उन कमल नेत्र श्रीकृष्णचंद्र से बढ़कर मैं और कोई तत्व नहीं जानता ।

 

हे कल्याणी ! सांसारिक मनोवृत्ति द्वारा ली गई परीक्षा में अविचल रह कर, सब कुछ शान्ति से सहते हुए तुमने सदा सबका मंगल ही चाहा । तुम्हारी भक्ति व प्रेम की भागीरथी के प्रवाह में अनेकों जीव अवगाहन कर तर गये ! तुम्हारे नाम में ही अलौकिक प्रेरणादायिनी शक्ति है । सर्वदा प्रपंचरत व स्वार्थी संसारी जन भला तुम्हें कैसे पहचान सकते हैं । तुम्हारे पूर्व तेज से महासाम्राज्य सत्ता भी काँप गई । नारी जाति में जन्म लेकर भी तुम सामान्य अबला ही न रह कर जगत्वंध विभूति हो गई, संत महात्माओं में सिरमौर सिद्ध हुई ।

 

शास्त्रों में तथा अपने अनुभव के अनुसार संत महात्मात्र ने भिन्न-भिन्न अनेकानेक साधन बताये हैं, किन्तु सबका लक्ष्य तो एक ही है । चित्त वृत्ति जितनी ही अधिक सांसारिक विषयों की ओर झुकेगो एवं रजोगुण तमोगुण में उलझेगी, संसार का बन्धन उतना ही अधिक दृढ़ होता जायगा और जितनी वह भगवदाभिमुखी होगी उतनी ही शीघ्रता से वह प्रभु के निकट ले जायगी । संसार के चिन्तन से दुःख और भगवतिन से सुख की प्राप्ति होती है यही विवेक, अखिल विश्व के सकल साम्प्रदायिक साधनों का रहस्य व सार भी है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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