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श्रीराधा माधव रस सुधा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Radha Madhav Ras Sudha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्रीराधा माधव रस सुधा | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक हैं : चिम्मनलाल गोस्वामी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB है | इस पुस्तक में कुल 52 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्रीराधा माधव रस सुधा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Radha Madhav Ras Sudha | Author/Editor of this book is : Chimmanlal Goswami | This book is published by : Gita Press Gorakhpur | PDF file of this book is of size 2 MB approximately. This book has a total of 52 pages. Download link of the book "Shri Radha Madhav Ras Sudha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
चिम्मनलाल गोस्वामीभक्ति, धर्म2 MB52



पुस्तक से : 

सच्चिदानन्दात्मनो भगवतः श्रीनन्दनन्दनस्य स्वरूपभूत- मानन्दं तदीया हृदिनीशक्तिरेव वा प्रादुर्भावमुपेत्य श्रीराधा- त्मना राजते श्रीराधा स्वरूपतो भगवतो वल्लवीवल्लभस्य विशुद्धतमप्रेम्ण एवाद्वितीया घनीभूता नित्या स्थितिरस्ति । ह्लादिन्याः सारः प्रेमा, प्रेम्णः सारो मादनाख्यो महाभात्रो मूर्तिमन्मादनाख्यमहाभावस्वरूपा चासौ श्रीमती राधा । सा प्रत्यक्षं गता साक्षाद्भूलादिनी शक्तिर्नित्यमेयमानस्य पावन- तमस्य प्रेम्ण आत्मस्वरूपा तदधिष्ठात्री देव्वेव देदीप्यते।

 

भावुका: पाठका भृशं गभीरतायामवतीर्य पदानामेषां भावानधिगन्तुं प्रयतिष्यन्ते चेत्तदा विज्ञास्यन्ति यच्छ्रीराधा कृष्णयोः प्रेम्णः स्वरूपं कियत् पवित्रतमं कीदृशं समर्पणपूर्ण दिव्यातिदिव्यं चास्ति । एतादृशमेव प्रेमादर्शभूतं मत्वा प्रेम- मार्गीयाः साधकाः स्वीयां साधनपद्धतिं विनिश्विनुयुः श्रीराधा- माधवचरणारविन्दविषयकं प्रेम चोपलभेरन्नित्येतदर्थमेव पदाना- मेषां प्रकाशनं विहितमस्ति शुभम्

 

रस- साहित्ये प्रायेण भूथिष्टतरा रचना ईदृश्य एव समुपलभ्यन्ते यासु श्रीकृष्णः प्रेमास्पदतया त्रिपयालम्बनतया वा चित्रणम श्रीराधायाश्व प्रेमिकात्वेनाश्रयालम्बनतया वा चित्रणं लोचनगोचरतामानीयते । परंत्वेषु षोडशगीतेषु सन्त्यष्टौ पदानीदृशानि यत्र श्रीकृष्णः श्रीराधामात्मनः प्रेमास्पदतामानीय तां प्रेमसाम्राज्यस्वामिनीं मन्यते स्वात्मानं च प्रेमवैभव- हीनं दीनमङ्गीकरोति।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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