Bhajanamrita-Gita-Press-Hindi-Book-PDF


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भजनामृत हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhajanamrita Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : भजनामृत | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: ईश्वरीप्रसाद गोयनका | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 123 MB है | इस पुस्तक में कुल 105 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "भजनामृत" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Bhajanamrita | Author/Editor of this book is : Ishwariprasad Goyandka | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 123 MB approximately. This book has a total of 108 pages. Download link of the book "Bhajanamrita" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
ईश्वरीप्रसाद गोयनकाधर्म, भक्ति123 MB108



पुस्तक से : 

भगवन्नामकी महिमा अमित है । इस दृष्टिसे भक्तों के लिये भजनों का महत्त्व अमृत तुल्य है । अपने प्रिय का नाम जपते-जपते प्रेमी का मन अनेक प्रकार की भाव-तरङ्गों से अनुप्राणित हो उठता है । प्रस्तुत संकलन में इन गम्भीर भाव तरङ्गों की माला पिरोने का प्रयास किया गया है | अनेक रसिक सन्तों की वाणियों की सम्पूर्ण सहज माधुरी समेटकर रखने की चेष्टा करना तो दुराशा ही है, परन्तु उस मिठासकी थोड़ी-बहुत अनुभूति इस संग्रह द्वारा हो— ऐसी हमारी चेष्टा रही है ।

 

हरी नाम सुमर सुखधाम, जगत में जिवना दो दिन का ॥ ढेर || सुन्दर काया देख लुभाया, गरव करै तन का । गिर गई देह बिखर गई काया, ज्यूँ माला मनका ॥ १ ॥ सुन्दर नारी लगै पियारी, मौज करै मन का । यो संसार स्वप्न की माया, मेला पल छिन का । काल वली का लाग्या तमंचा, भूल जाय उन का ॥ २ ॥ झूठ कपट कर माया जोड़ी, गरव करे धन का । सब ही छोड़कर चल्या मुसाफिर वास हुआ वन का ॥

 

‘भजनामृत' के भजनों को पाँच भागों में विभक्त किया गया है । ‘नाम-महिमा’ में भगवन्नामका महत्त्व दरसाया गया है । 'अभिलाषा' के अन्तर्गत भगवत्प्रेमी सन्तों की सुमधुर कल्याणमयी कामनाओं का दिग्दर्शन कराने वाले पदों की छटा भाव-दृष्टि के सामने आती है । 'निवेदन' शीर्षक के अन्तर्गत विनम्र भावों का चयन हुआ है । इसी प्रकार भगवद्वियोग की पीड़ा का चित्रण 'वियोग' शीर्षक के अन्तर्गत पदों में है । ‘लीलागान’ में भगवल्लीला की मनमोहिनी झाँकी है तथा अन्तमें ‘विविध' शीर्षक के द्वारा सन्तों के अन्यान्य भावों की झलक दिखलानेवाली वाणी को लिया गया है ।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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