Bhartiya-Vastu-Shastra-ka-Itihas-Hindi-Book-PDF


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भारतीय वास्तुशास्त्र का इतिहास हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhartiya Vastu Shastra ka Itihas Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : भारतीय वास्तुशास्त्र का इतिहास | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ विद्याधर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : ईस्टर्न बुक्स लिंकर्स, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 261 MB है | इस पुस्तक में कुल 298 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "भारतीय वास्तुशास्त्र का इतिहास" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Bhartiya Vastu Shastra ka Itihas | Author/Editor of this book is : Dr Vidyadhar | This book is published by : Eastern Books Linkers, Delhi | PDF file of this book is of size 261 MB approximately. This book has a total of 298 pages. Download link of the book "Bhartiya Vastu Shastra ka Itihas" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ विद्याधरइतिहास, वास्तु261 MB298



पुस्तक से : 

वास्तु-विद्या का उद्भव मानव के जगत् में अवतरण के साथ ही हुआ होगा। भोजन की आवश्यकता पूर्ति के साथ समुचित आवास का चिन्तन उसने अपने आरम्भिक काल से ही प्रारम्भ कर दिया होगा। मानव सभ्यता के विकास के साथ रचना सम्बन्धी वैविध्य का विस्तार होता गया। पाषाण युग के मानव ने अपने निवास के लिए यदि गुफाओं का चयन किया तो उसने गुफाओं के निर्माण में अपने रचना कौशल को भी सम्मिलित किया होगा.

 

वास्तुशास्त्र हमारे प्राचीन ऋषियों के निर्माण सम्बन्धी ज्ञान के संवाहक हैं। इस विषय पर चिन्तन के संकेत ऋग्वेद से ही मिलने लगते हैं। ब्राह्मण ग्रन्थ एवं सूत्र साहित्यमें भी इस तकनीकी विषय पर समुचित चिन्तन हुआ है। इस प्रकार वास्तुशास्त्र वैदिक साहित्यकी ही ऊष्मा है। इस विषय पर विरचित विश्वकर्मा, मानसार, भुवनदेव, भोज, श्रीकुमार आदि की रचनाएँ जहाँ एक ओर विषयकी महत्ता एवं उपयोगिता की व्याख्या करते हैं, वहीं ये कतिपय ग्रन्थ विषय की अत्यन्त दुरुहता की ओर भी संकेत करते हैं।

 

'वास्तु' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की 'वस्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है 'बसना' अर्थात् 'निवास करना'। "वसन्ति प्राणिनो यत्र" अर्थात् प्राणियों के वासस्थान को 'वास्तु' कहा जाता है।' इस दृष्टि से जो प्राणी जहाँ रहता है उसके लिए वही वास्तु है। जलचर जल में रहते हैं, उनके लिए जल ही वास्तु है। पक्षी अपने नीड में रहते हैं, अत: उनके लिए नीड ही उनका वास्तु है परन्तु अमर कोष में गृह के लिए नियत भूमि को 'वास्तु' कहा गया है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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