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भवरोग की रामबाण दवा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhavarog ki Ram Baan Dava Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : भवरोग की रामबाण दवा | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: हनुमानप्रसाद पोद्दार | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 50 MB है | इस पुस्तक में कुल 188 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "भवरोग की रामबाण दवा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Bhavarog ki Ram Baan Dava | Author/Editor of this book is : Hanumanprasad Poddar | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 50 MB approximately. This book has a total of 188 pages. Download link of the book "Bhavarog ki Ram Baan Dava" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमान प्रसाद पोद्दारधर्म, भक्ति50 MB188



पुस्तक से : 

'कल्याण' में कुछ वर्ष पूर्व 'पञ्चसकार' शीर्षक से भाईजी (श्रीयुत हनुमानप्रसादजी पोद्दार ) की दो लेखमालाएँ प्रकाशित हुई थीं, जिनमें क्रमशः सहिष्णुता, सेवा, सम्मानदान, स्वार्थत्याग, समता, सत्सङ्ग, सदाचार, सन्तोष, सरलता और सत्य — इन दस गुण का विस्तृत विवेचन किया गया था । इस पुस्तक में वे ही दोनों लेख मालाएँ संगृहीत हैं । आयुर्वेद में पश्ञ्चसकार नाम का एक प्रसिद्ध नुसखा है, जो पाँच चीजों से तैयार किया जाता है। उन चीजों के नाम सकारादि होनेसे नुसखे का नाम पञ्चसकार रखा गया है ।

 

एक बात यह याद रखनेकी है कि सुखकी प्राप्ति में हर्ष होना और दुःखमें विषादसे जलना दोनों ही असहिष्णुता के दो प्रकार हैं । कई लोग इस असहिष्णुतामूलक सुख को ही आनन्द मानते हैं, परंतु यह उनकी भूल है । तत्त्वज्ञ पुरुषों ने असहिष्णुतामूलक सुख और दुःख दोनोंको ही परिणाम में दुःखरूप होनेसे दुःख ही चतलाया है, अतएव सुख-दुःख दोनोंमें ही सहिष्णुता होनी चाहिये। दोनों में ही विकारहीन स्थिति होनी चाहिये।

 

ऋतुओं के अनुसार ही भिन्न-भिन्न वृक्ष फूलते-फलते हैं । बारहों महीने सब समान रूप से फर्ले-फूले तो इस विचित्र पुष्पोद्यान का सौन्दर्य ही नष्ट हो जाय । आज एक की मौसिम है, वह फूलता - फलता है तो दूसरा उसे देखकर जले क्यों? उसे इस आशासे प्रसन्न होना चाहिये कि इसीकी भाँति मेरी मौसिम आनेपर मैं भी फूल-फलूँगा और इस सुख स्मृति में कारण उस आज के फूले-फले वृक्षको मानकर उसके प्रति और भी प्रेम होना चाहिये. 

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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