Chandogya-Upanishad-Gita-Press-Gorakhpur-pdf


Chandogya-Upanishad-Gita-Press-Gorakhpur-Hindi-pdf


छांदोग्य उपनिषद हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Chandogya Upanishad Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : छांदोग्य उपनिषद | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 401 MB है | इस पुस्तक में कुल 978 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "छांदोग्य उपनिषद" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Chandogya Upanishad | Author/Editor of this book is : Gita Press, Gorakhpur | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 401 MB approximately. This book has a total of 978 pages. Download link of the book "Chandogya Upanishad" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेस, गोरखपुरधर्म, उपनिषद401 MB978



पुस्तक से : 

छान्दोग्योपनिषद् सामवेदीय तलवकार ब्राह्मण के अन्तर्गत है । केनोपनिषद् भी तलवका रशाखा की ही है। इसलिये इन दोनों का एक हो शान्तिपाठ है । यह उपनिषद् बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसकी वर्णन शैली अत्यन्त क्रमबद्ध और युक्तियुक्त है। इसमें तत्त्वज्ञान और तदुपयोगी कर्म तथा उपासनाओं का बड़ा विशद और विस्तृत वर्णन है । यद्यपि आजकल औपनिषद कर्म और उपासना का प्रायः सर्वथा लोप हो जाने के कारण उनके स्वरूप और रहस्यका यथावत् ज्ञान इने-गिने प्रकाण्ड पण्डित और विचारकों को ही है, तथापि इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके मूलमें जो भाव और उद्देश्य निहित है उसी के आधार पर उनसे परवर्ती स्मार्त कर्म एवं पौराणिक और तान्त्रिक उपासनाओं का आविर्भाव हुआ है।

 

सकामकर्मी लोग धूममार्गसे स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होकर पुण्य क्षीण होने पर पुनः जन्म लेते हैं। निष्कामकर्मी और उपासक अचिरादि मार्ग से अपने उपास्यदेव के लोकमें जाकर अपने अधिकारानुसार सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य या सायुज्य मुक्ति प्राप्त करते हैं। इन दोनों गतियों का इस उपनिषद् के पाँचवें अध्याय में विशद रूप से वर्णन किया गया है। इन दोनों से अलग जो तत्त्वज्ञानी होते हैं उनके प्राणोंका उत्क्रमण (लोकान्तर में गमन) नहीं होता; उनके शरीर यहीं अपने-अपने तत्त्वोंमें लोन हो जाते हैं और उन्हें यहाँ ही कैवल्यपद प्राप्त होता है।

 

औपनिषद-दर्शन ही सम्यग्दर्शन है । इसी से भवभय का निरास होकर आत्यन्तिक आनन्द की प्राप्ति होती है । इस दृष्टिको प्राप्त कर लेना ही मानव-जीवनका प्रधान उद्देश्य है - यही परम पुरुषार्थ है। इसे पाये बिना जीवन व्यर्थ है, इसे न पा सकना ही सबसे बड़ी हानि है.

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

"छांदोग्य उपनिषद" हिन्दी पुस्तक को सीधे एक क्लिक में मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |

To download "Chandogya Upanishad" Hindi book in just single click for free, simply click on the download button provided below.


Download PDF (401 MB)


If you like the book, we recommend you to buy it from the original publisher/owner.



यदि इस पुस्तक के विवरण में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से संबंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उस सम्बन्ध में हमें यहाँ सूचित कर सकते हैं