Geeta-Darpan-Swami-Ramsukhdasji-Hindi-Book-PDF
Geeta Darpan (Swami Ramsukhdas ji) Book

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Geeta Darpan (Swami Ramsukhdas ji) Hindi Book

गीता दर्पण हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Geeta Darpan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गीता दर्पण | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक हैं : स्वामी रामसुखदास जी महाराज | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : स्वामी रामसुखदास जी महाराज | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 36 MB है | इस पुस्तक में कुल 425 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गीता दर्पण" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Geeta Darpan | Author/Editor of this book is : Swami Ramsukhdas ji Maharaj | This book is published by : Swami Ramsukhdas ji Maharaj | PDF file of this book is of size 36 MB approximately. This book has a total of 425 pages. Download link of the book "Geeta Darpan" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी रामसुखदास जीआत्मकथा, भक्ति36 MB425



पुस्तक से : 

भगवान्‌की दिव्य वाणी श्रीमद्भगवद्गीता के भाव बहुत ही गम्भीर और अनायास कल्याण करनेवाले हैं। उनका मनन करने से साधक के हृदय में नये-नये विलक्षण भाव प्रकट होते हैं। समुद्र में मिलने वाले रत्नों का तो अन्त आ सकता है, पर गीता में मिलनेवाले मनोमुग्धकारी भावरूपी रत्नों का कभी अन्त नहीं आता।

 

इस 'गीता-दर्पण' के माध्यम से गीता का अध्ययन करने पर साधक को गीता का मनन करने की, उसको समझने की एक नयी दिशा मिलेगी, नयी विधियाँ मिलेंगी, जिससे साधक स्वयं भी गीता पर स्वतन्त्र रूप से विचार कर सकेगा और नये-नये विलक्षण भाव प्राप्त कर सकेगा। उन भावों से उसको गीता वक्ता (भगवान्) के प्रति एक विशेष श्रद्धा जाग्रत होगी कि इस छोटे-से ग्रन्थ में भगवान्ने कितने विलक्षण भाव भर दिये है। ऐसा श्रद्धा भाव जाग्रत् होनेपर 'गीता ! गीता !!' उच्चारण करनेमात्रसे उसका कल्याण हो जायगा।

  

जैसे भक्त जिस भाव से भगवान्‌का भजन करता है, भगवान् भी उसी भावसे उसका भजन करते हैं (४ ११), ऐसे ही मनुष्य जिस मान्यता को लेकर गीताको देखता है, गीता भी उसी मान्यता के अनुसार उसको दीखने लग जाती है। जैसे मनुष्य दर्पण के सामने जैसा मुख बनाकर जाता है, उसको वैसा ही मुख दर्पण में दीखने लग जाता है, ऐसे ही भगवान्‌की वाणी गीता इतनी विलक्षण है कि इसके सामने मनुष्य जैसा सिद्धान्त बनाकर जाता है, उसको वैसा ही सिद्धान्त गीता में दीखने लग जाता है। इस प्रकार गोतारूपी दर्पण में कर्मयोगियों को कर्मशास्त्र, ज्ञानयोगियों को ज्ञानशास्त्र और भक्तियोगियों को भक्तिशास्त्र दीखता है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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