Geeta-ki-Sampatti-aur-Shraddha-Gita-Press-Book-PDF


Geeta-ki-Sampatti-aur-Shraddha-Gita-Press-Hindi-Book-PDF


गीता की संपत्ति और श्रद्धा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Geeta ki Sampatti aur Shraddha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गीता की संपत्ति और श्रद्धा | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: स्वामी रामसुखदास जी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 72 MB है | इस पुस्तक में कुल 252 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गीता की संपत्ति और श्रद्धा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Geeta ki Sampatti aur Shraddha | Author/Editor of this book is : Swami Ramsukhdas ji | This book is published by : Gita Press Gorakhpur | PDF file of this book is of size 72 MB approximately. This book has a total of 252 pages. Download link of the book "Geeta ki Sampatti aur Shraddha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी रामसुखदास जी धर्म, भक्ति72 MB252



पुस्तक से : 

वर्तमान समय बहुत विपरीत चल रहा है! क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये - इसे लोग प्रायः जानते ही नहीं। वे अपने वास्तविक उद्देश्य की ओर से अपनी आँखें मूँदकर सांसारिक भोग और संग्रह में ही रात-दिन लगे हुए हैं। उसका परिणाम क्या होगा - इस तरफ उनकी दृष्टि ही नहीं है । नयी पीढ़ी की तो और भी दयनीय दशा है ।

 

श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्यमात्र को सही मार्गदर्शन करानेवाला सार्वभौम महाग्रन्थ है। वर्तमान समय में इसका 16वाँ, 17वाँ अध्याय सर्वसाधारण के लिये, विशेषरूप से साधकों के लिए बहुत उपयोगी है । हमारे श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज ने इन दोनों अध्यायों की बहुत सुन्दर, सरल एवं सुबोध व्याख्या कर दी है, जिसे प्रस्तुत पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया है । इसमें आधुनिक युगको सामने रखते हुए देवी और आसुरी भावों तथा आचरणों का सजीव चित्रण किया गया है, जिससे पाठक दोनों को पहचानकर आसुरी-सम्पत्ति का त्याग तथा दैवी-सम्पत्ति का ग्रहण कर सकें; क्योंकि 'संग्रह त्याग न विनु पहिचाने।'

 

आसुरी सम्पत्ति आगन्तुक है, दुर्गुण-दुराचार बिल्कुल ही आगन्तुक हैं. कोई आदमी प्रसन्न रहता है, तो लोग ऐसा नहीं कहते कि तुम प्रसन्न क्यों रहते हो ? पर कोई आदमी दुःखी रहता है, तब कहते हैं कि दुःखी क्यों रहते हो ? क्योंकि प्रसन्नता खाभाविक है और दुःख अस्वाभाविक (आगन्तुक) है इस वास्ते अच्छे आचरण करनेवाले को कोई नहीं कहता कि तुम अच्छे आचरण क्यों करते हो?

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

"गीता की संपत्ति और श्रद्धा" हिन्दी पुस्तक को सीधे एक क्लिक में मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |

To download "Geeta ki Sampatti aur Shraddha" Hindi book in just single click for free, simply click on the download button provided below.


Download PDF (72 MB)


If you like the book, we recommend you to buy it from the original publisher/owner.



यदि इस पुस्तक के विवरण में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से संबंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उस सम्बन्ध में हमें यहाँ सूचित कर सकते हैं