Kalyan-Balak-Anka-Gita-Press-Hindi-Book-PDF


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कल्याण बालक अंक हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kalyan Balak Anka Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कल्याण बालक अंक | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: हनुमान प्रसाद पोद्दार, चिम्मन लाल गोस्वामी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 680 MB है | इस पुस्तक में कुल 914 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कल्याण बालक अंक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kalyan Balak Anka | Author/Editor of this book is : Hanuman Prasad Poddar, Chimman Lal Goswami | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 680 MB approximately. This book has a total of 914 pages. Download link of the book "Kalyan Balak Anka" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमान प्रसाद पोद्दारधर्म, भक्ति, समाज680 MB914



पुस्तक से : 

इस बालक अंक में बहुत ही उपादेय सामग्री दी गयी है। माता-पिता तथा अभिभावकों को उनके कर्तव्य का बड़े विशद रूप में ज्ञान कराया गया है। अवश्य कर्तव्य धार्मिक संस्कारों की वैज्ञानिक व्याख्या की गयी है। शिक्षाकी वर्तमान त्रुटियाँ और उनके सुधारके समुचित उपाय बतलाये गये हैं। बालक-बालिकाओं और तरुण तरुणियोंके जीवनको निर्दोष, सात्त्विक बनाने और उसे यथार्थ उच्च स्तर पर ले जाने वाले विभिन्न साधनों का विस्तार से उल्लेख किया गया है और भगवान् श्रीराम कृष्ण की सुन्दर बाल लीलाओंके विशद वर्णन के साथ ही ज्ञानी, भक्त, कर्मयोगी, ईश्वर विश्वासी, दयालु, मातृ-पितृ-भक्त, वीर, धर्मपर बलिदान हो जाने वाले, मेधावी, गुणवान् सैकड़ों बालक-बालिकाओं के बड़े सुन्दर चरित्र-चित्र दिये गये हैं।

 

'संस्कार' शब्द का अर्थ ही है दोषों का परिमार्जन करना । जीव के दोषों और कमियों को दूरकर उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन पुरुषार्थ-चतुष्टय के योग्य बनाना ही संस्कार करने का उद्देश्य है ।

 

मनुष्य- शरीर का पोषण अन्न से होता है । वह अन्न प्रज्ञा, आयु एवं अमृतरूप होकर पुत्रकी वृद्धि करे ऐसी कामना की जाती है। इसके अतिरिक्त पुत्र मेधावी बने, यह भी देवताओंसे प्रार्थना की जाती है। सर्वसाधारण का भी यह अनुभव है कि कोई भी सदाचारी पुरुष सच्चे हृदय से किसी के लिये शुभ कामना करे तो वह कुछ-न-कुछ शुभ परिणाम उत्पन्न करती ही है—व्यर्थ नहीं जाती । स्वधर्म निष्ठा से संकल्प में बल आता है। 

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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