Kalyan-Dharm-Anka-Gita-Press-Hindi-Book-PDF


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कल्याण धर्म अंक हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kalyan Dharm Anka Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कल्याण धर्म अंक | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: हनुमान प्रसाद पोद्दार, चिम्मनलाल गोस्वामी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 550 MB है | इस पुस्तक में कुल 754 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कल्याण धर्म अंक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kalyan Dharm Anka | Author/Editor of this book is : Hanuman Prasad Poddar, Chimmanlal Goswami | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 550 MB approximately. This book has a total of 754 pages. Download link of the book "Kalyan Dharm Anka" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमान प्रसाद पोद्दारधर्म, भक्ति, समाज550 MB754



पुस्तक से : 

मानव-जीवन कितना क्षणभङ्गुर है ! हम सोचते कुछ हैं, विधाता के विधान से हो जाता है कुछ और ही । श्रीलालबहादुरजी शास्त्रीका जहाँ सफल-यात्रा का स्वागत होने वाला था, वहाँ उनकी शवयात्रा का जुलूस निकला । वे सारे विश्व में शान्ति चाहते थे । युद्ध में तो उन्हें बाध्य होकर प्रवृत्त होना पड़ा था अपनी मङ्गल इच्छा के विरुद्ध । पर भगवान् की कृपासे उन्हें सफलता मिली ।

 

वर्तमान में प्रायः सारी दुनिया अधर्मसे नाता जोड़े हुए है। राजनीतिक क्षेत्र में तो धर्मका बहिष्कार है ही, धार्मिक जगत में भी विपरीत तामस बुद्धि के कारण धर्म के नाम पर प्रायः अधर्म ने ही अड्डा जमा रक्खा है. सर्वत्र ही भ्रष्टाचार, दुराचार, व्यभिचार, अनाचार, अत्याचार, असदाचार, मिथ्याचार का विस्तार हो रहा है। लोगों की धर्म से चिढ़ और अधर्म में गौरव-बुद्धि हो गयी है। यह धर्म जगत को अनन्त दुःखमय सर्वनाशकी ओर लिये जा रहा है। ऐसे समय में इस 'धर्म अंक' का प्रकाशन इसीलिये किया जा रहा है कि जिससे धर्मप्राण भारतके आत्मविस्मृत लोग पुनः धर्म का महत्व समझे और धर्मकी रक्षा करके सुरक्षित हो।

 

सनातन का अर्थ है 'नित्य' । वैदिक धर्मका नाम 'सनातन धर्म' अत्यन्त उपयुक्त है । अन्य किसी भी भाषामें 'धर्म' का वाचक कोई शब्द नहीं मिलता। अंग्रेजी में इसके लिये 'रिलीजन' शब्द है, पर धर्मका भाव 'रिलीजन' में पूरी तरहसे नहीं उतर पाता । ‘रिलीजन' शब्द धर्मके उस भावको लिये हुए है, जो बहुत सीमित और संकुचित है; पर सनातन-धर्मं इतना विशाल है कि इसमें हमारे इस जन्मके ही नहीं, अपितु पूर्वजन्म और भविष्य जन्मके सभी विषयों और परिणाम का पूर्णतया समावेश हो जाता है । शास्त्रों में धर्म की परिभाषा 'धारणात् धर्मः' की गयी है । विद्यमान है । अर्थात् धर्म वह है, जो हमें सब तरहके विनाश और अधोगति से बचाकर उन्नतिकी ओर ले जाता है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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