Kalyan-Sat-Katha-Anka-Gita-Press-Hindi-Book-PDF


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कल्याण सत् कथा अंक हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kalyan Sat Katha Anka Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कल्याण सत् कथा अंक | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: हनुमान प्रसाद पोद्दार, चिम्मनलाल गोस्वामी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 576 MB है | इस पुस्तक में कुल 800 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कल्याण सत् कथा अंक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kalyan Sat Katha Anka | Author/Editor of this book is : Hanuman Prasad Poddar, Chimmanlal Goswami | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 576 MB approximately. This book has a total of 800 pages. Download link of the book "Kalyan Sat Katha Anka" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमान प्रसाद पोद्दारधर्म, भक्ति576 MB800



पुस्तक से : 

भरत ने पादुकाओं को प्रणाम किया और श्रीराम से कहा मैं चौदह वर्ष तक अरण्यवासी तपस्वी के सदृश जटा-वल्कल धारण करके नगर के बाहर रहूँगा और फल मूल का आहार करता हुआ आपकी प्रतीक्षा करता रहूँगा । इन पादुकाओं को राजसिंहासन पर पधराकर इन्होंके लिये चौदह वर्षतक सेवक की तरह मैं राजकाज देखता रहूँगा । 14वें वर्ष का अन्तिम दिन बीतने के बाद पहले ही दिन आपके दर्शन नहीं होंगे तो मैं प्रज्वलित अग्निमें प्रवेश कर जाऊँगा ।

 

भरत ने उन श्रेष्ठ पादुकाओंको लेकर अपने सिर पर रक्खा । श्रीराम की प्रदक्षिणा की और उनको हाथी पर पथराया। अयोध्या पहुँचकर लोगों से कहा कि इनपर छत्र धारण करो । ये भगवान् श्रीरामके प्रतिनिधि हैं। मेरे बड़े भाई भगवान् रामने प्रेमवश मुझे यह धरोहर दी हैं। जबतक वे लौटकर नहीं पचारेंगे, तबतक मैं इनकी रक्षा करूँगा । शीघ्र ही श्रीरामजी के चरणों में इन पादुकाओं को पहनाकर मैं उनके पादुकायुक्त चरणों के दर्शन करूँगा ।

 

हमलोग गीतादि शास्त्रों को पढ़ते हैं, सुनते हैं, मनन करते हैं और कथन भी करते हैं; किंतु धारण किये बिना उनसे होने वाला विशेष लाभ नहीं हो पाता। इसी प्रकार हम वर्षों से सत्सङ्ग करते हैं; पर महापुरुषों की बातों को काम में नहीं लाते; इसी कारण विशेष लाभ नहीं होता । इसलिये हमें शास्त्रों और महापुरुषों की बातों को सुनकर और उनमें प्रत्यक्ष की भाँति अतिशय विश्वास करके काम में लाने के लिये तत्पर होना चाहिये।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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