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कल्याण शिक्षा अंक हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kalyan Shiksha Anka Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कल्याण शिक्षा अंक | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: राधेश्याम खेमका, हनुमान प्रसाद पोद्दार | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1.7 GB है | इस पुस्तक में कुल 513 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कल्याण शिक्षा अंक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kalyan Shiksha Anka | Author/Editor of this book is : Radheshyam Khemka, Hanuman Prasad Poddar | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 1.7 GB approximately. This book has a total of 513 pages. Download link of the book "Kalyan Shiksha Anka" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमान प्रसाद पोद्दारधर्म, भक्ति, समाज1.7 GB513



पुस्तक से : 

'जिनका मुख पूर्णिमाके चन्द्र-सदृश गौर है, जिनकी अङ्गकान्ति कर्पूर और कुन्द- पुष्पके समान हैं, जिनका मस्तक अर्धचन्द्रसे अलंकृत है, जो अपने हाथोंमें वीणा, अक्षसूत्र, अमृत पूर्ण कलश और पुस्तक धारण करती है तथा ऊंचे स्तनोवाली हैं, जिनका शरीर दिव्य आभूषणों से विभूषित है। और जो हंस पर सवार होती हैं, उन सरस्वती देवीका मैं आदरपूर्वक ध्यान करता हूँ ।

 

हे परमात्मन्! आप हम गुरु-शिष्य दोनोंकी साथ-साथ सब प्रकार से रक्षा करें, हम दोनों का आप साथ-साथ समुचित रूप से पालन-पोषण करें, हम दोनों साथ ही साथ सब प्रकार से बल प्राप्त करें, हम दोनों की अध्ययन की हुई विद्या तेजस्विनी हो हम कहीं किसी से विद्या में परास्त न हों और हम दोनों जीवन भर परस्पर स्नेह-सूत्र से बँधे रहें, हमारे अंदर परस्पर कभी द्वेष न हो। हम दोनों के तीनों तापों की निवृत्ति हो.

 

भगवान् व्यास साक्षात् परमात्मा हैं। फिर भी सर्वत्र केवल भगवदुपासनासे भगवत्साक्षात्कारकी शिक्षा देते हैं जो अनन्यभाव से इनके ग्रन्थोंका चिन्तन करता हुआ तदनुसार भगवत्स्मरण, ध्यान, दर्शन की साधना करता है, उसे इनकी कृपासे पूर्ण सिद्धि, पूर्णानन्द प्राप्त होता है इस प्रकार ये स्वयं गुरु, ब्रह्म, विद्या, शिक्षा एवं शिक्षक सभी रूपों में वन्दनीय हैं। आज जो भी ज्ञान, सुशिक्षा-रूपी निधि हमें प्राप्त है, वस्तुतः सब इन्हीं का कृपाप्रसाद, उच्छिष्ट हैं।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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