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कर्म रहस्य हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Karma Rahasya Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कर्म रहस्य | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: स्वामी रामसुखदास जी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 38 MB है | इस पुस्तक में कुल 76 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कर्म रहस्य" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Karma Rahasya | Author/Editor of this book is : Swami Ramsukhdas ji | This book is published by : Gita Press Gorakhpur | PDF file of this book is of size 38 MB approximately. This book has a total of 76 pages. Download link of the book "Karma Rahasya" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी रामसुखदास जी धर्म, भक्ति38 MB76



पुस्तक से : 

वर्तमान समयमें 'कर्म' सम्बन्धी कई भ्रम लोगों में फैले हुए हैं । इसलिये इन बातों को समझने की वर्तमान में बड़ी आवश्यकता है। हमारे परमश्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज ने श्रीमद्भगवद्गीता की 'साधक-संजीवनी' हिन्दी - टीका में इन दोनों बातोंका बड़े सुन्दर और सरल ढंगसे विवेचन किया है। उसीको इस पुस्तक के रूप में अलगसे प्रकाशित किया जा रहा है। प्रत्येक भाई-बहन को यह पुस्तक स्वयं भी पढ़नी चाहिये तथा दूसरों को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करना चाहिये । इस पुस्तकके पढ़नेसे कर्म और वर्ण-व्यवस्थासे सम्बन्धित अनेक शंकाओं का समाधान हो सकता है।

 

पुरुष और प्रकृति — ये दो हैं। इनमें से पुरुषमें कभी परिवर्तन नहीं होता और प्रकृति कभी परिवर्तनरहित नहीं होती। जब यह पुरुष प्रकृति के साथ सम्बन्ध जोड़ लेता है, तब प्रकृति की क्रिया पुरुषका 'कर्म' बन जाती है; क्योंकि प्रकृति के साथ सम्बन्ध मानने से तादात्म्य हो जाता है। तादात्म्य होने से जो प्राकृत वस्तुएँ प्राप्त हैं, उनमें ममता होती है और उस ममता के कारण अप्रोप्त वस्तुओं की कामना होती है।

 

अनेक मनुष्य जन्मोंमें किये हुए जो कर्म (फल-अंश और संस्कार-अंश) अन्तःकरणमें संगृहीत रहते हैं, वे सञ्चितकर्म कहलाते हैं। उनमें फल-अंशसे तो 'प्रारब्ध' बनता है और संस्कार अंशसे 'स्फुरणा' होती रहती है। उन स्फुरणाओं में भी वर्तमानमें किये गये जो नये क्रियमाण कर्म सञ्चित में भरती हुए हैं, प्रायः उनकी ही स्फुरणा होती है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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