Kavyadarsha-Book-PDF

Kavyadarsha-Book-PDF


काव्यादर्श हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kavyadarsha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : काव्यादर्श | इस ग्रन्थ के मूल रचनाकार हैं : दण्डी | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: आचार्य श्रीराम चंद्र मिश्र | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 601 MB है | इस पुस्तक में कुल 338 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "काव्यादर्श" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kavyadarsha | This book is originally composed by : Dandin | Editor of this book is : Acharya Shri Ram Chandra Mishra | This book is published by : Chaukhamba Vidya Bhavan, Varanasi | PDF file of this book is of size 601 MB approximately. This book has a total of 338 pages. Download link of the book "Kavyadarsha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आचार्य श्रीराम चंद्र मिश्रसाहित्य, काव्य601 MB338



पुस्तक से : 

काव्यशास्त्र समाज का चित्र माना जाता है, कवि अपनी प्रतिभाके द्वारा समाज का सर्वाङ्गीण चित्र अपने काव्यों में उपस्थित करते हैं, उसके नियमों का, स्वरूप का, दोष-गुण का और उसमें अपेक्षित रीति आदि का विवेचन भी काव्य के करने तथा यथार्थरूप में समझने के लिये आवश्यक हो जाता है। इसी तरह की विवेचना के लिये प्रस्तुत ग्रन्थों की गणना साहित्य शास्त्र के विभाग में की जाती है।

 

अलङ्कार शब्दका अर्थ भूषण माना जाता है। जिससे अङ्ग को तथा उसके द्वारा अंग की शोभावृद्धि होती है उसे अलंकार कहते हैं। अलङ्कार का लौकिक प्रयोग-विषय जितना प्रसिद्ध है, शास्त्रीय प्रयोग-विषय भी उतना ही प्रसिद्ध है। जिस प्रकार से शरीर शोभा-वर्धन द्वारा शरीरी की शोभा बढ़ाने वाले हारादि अलङ्कार कहे जाते हैं उसी तरह शब्दार्थस्वरूप शरीर शोभा-वर्धन द्वारा रसरूप शरीरी की शोभा बढ़ाने वाले उपमादि अलङ्कार कहे जाते हैं ।

 

जयदेव का चन्द्रालोक एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इनका समय क्या है? इस सम्बन्ध में मतभेद पाया जाता है। यदि चन्द्रालोककारको ही प्रसन्नराघव का निर्माता मान लिया जाय तो इनका समय १२ वीं और १३ वीं शताब्दी के मध्य में हो सकता है, और यदि मैथिल सम्प्रदाय के मन्तव्यों के अनुसार प्रसन्नराधव के प्रणेता और चन्द्रालोक के प्रणेता में भेद माना जाय तो उनका अर्वाचीन होना ही युक्तिसङ्गत माना जायगा ।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

"काव्यादर्श" हिन्दी पुस्तक को सीधे एक क्लिक में मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |

To download "Kavyadarsha" Hindi book in just single click for free, simply click on the download button provided below.


Download PDF (601 MB)


If you like the book, we recommend you to buy it from the original publisher/owner.



यदि इस पुस्तक के विवरण में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से संबंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उस सम्बन्ध में हमें यहाँ सूचित कर सकते हैं