Kavyalankara-Sutra-Hindi-Book-PDF


काव्यालंकार सूत्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kavyalankara Sutra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : काव्यालंकार सूत्र | इस ग्रन्थ के मूल रचनाकार हैं : आचार्य वामन | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ बेचन झा, डॉ रेवाप्रसाद द्विवेदी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्भा संस्कृत संस्थान, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 531 MB है | इस पुस्तक में कुल 324 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "काव्यालंकार सूत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kavyalankara Sutra | This book is originally written by : Acharya Vamana | Author/Editor of this book is : Dr Bechan Jha, Dr Revaprasad Dwivedi | This book is published by : Chaukhambha Sanskrit Sansthan, Varanasi | PDF file of this book is of size 531 MB approximately. This book has a total of 324 pages. Download link of the book "Kavyalankara Sutra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ बेचन झाकाव्य, साहित्य531 MB324



पुस्तक से : 

प्रस्तुत ग्रन्थ 'काव्यालंकारसूत्रवृत्ति' १२०० वर्ष प्राचीन ग्रन्थ है। इसके रचयिता हैं आचार्य वामन । इनके समय तक भारतीय काव्य समीक्षा का इतिहास अपने कम से कम 1000 वर्ष बिता चुका था । इस अवधि में काव्य को अकाव्य से भिन्न करने वाले जिन तत्वों की पहचान की गई थी वे थे - रस-तत्व, अलंकार-तत्व, गुण-तत्त्व. ये तत्त्व संग्राह्य तत्त्व थे । इनके अतिरिक्त काव्यात्मक अभिव्यक्ति में परित्याज्य तत्त्वों के रूप में दोषों का भी विचार किया गया था।

 

वामन ने 'अलंकार' शब्द को उपमा, रूपक, दीपक आदि की संकोणं सीमा और बाह्य सतह से ऊपर उठ व्याप्ति की अनिभूमि तक पहुँचे आयाम में और काव्य के अन्तस्तम तक निविष्ट तत्व के रूप में देखा। यह तत्त्व था सौन्दर्य तत्त्व। संस्कृत के संपूर्ण काव्यशास्त्र में पहली घोषणा वामन की है कि – 'काव्य का सर्वस्व सौन्दर्य है'।

 

किसी भी जीवित वृक्ष के शरीर संहिता में रहस्यरूप से प्रवहमान भूगर्भीय रस से पूछिए इसका समाधान । भूगर्भ की अग्नि या गायत्र तेज जिस रस को ऊपर फेकता है वह वृक्ष शरीर की शिखा परिच्छित्ति से जा टकराता है। वृक्ष सहस्रशाख हो आकाश के सन्धिबन्धों का आश्लेष करने लगता है। पूछिए इस वृक्ष से, क्या इसका यह विराट् वैभव भूगर्भीय रस की चिति के पहले था?

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

"काव्यालंकार सूत्र" हिन्दी पुस्तक को सीधे एक क्लिक में मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |

To download "Kavyalankara Sutra" Hindi book in just single click for free, simply click on the download button provided below.


Download PDF (531 MB)


If you like the book, we recommend you to buy it from the original publisher/owner.



यदि इस पुस्तक के विवरण में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से संबंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उस सम्बन्ध में हमें यहाँ सूचित कर सकते हैं