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केनोपनिषद हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kena Upanishad Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : केनोपनिषद | इस पुस्तक के लेखक/संपादक है: गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 52 MB है | इस पुस्तक में कुल 190 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "केनोपनिषद" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kena Upanishad | Author/Editor of this book is : Gita Press, Gorakhpur | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 52 MB approximately. This book has a total of 190 pages. Download link of the book "Kena Upanishad" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेस, गोरखपुरधर्म, उपनिषद52 MB190



पुस्तक से : 

केनोपनिषद् सामवेदीय तलवकार ब्राह्मण के अन्तर्गत है । इसमें आरम्भ से लेकर अन्तपर्यन्त सर्वप्रेरक प्रभु के ही स्वरूप और प्रभाव का वर्णन किया गया है। पहले दो खण्डों में सर्वाधिष्ठान परब्रह्म के पारमार्थिक स्वरूप का लक्षणा से निर्देश करते हुए परमार्थ ज्ञान की अनिर्वचनीयता तथा ज्ञेय के साथ उसका अभेद प्रदर्शित किया है। इसके पश्चात् तीसरे और चौथे खण्ड में यक्षोपाख्यान द्वारा भगवान्‌ का सर्वप्रेरकत्व और सर्वकर्तृत्व दिखलाया गया है। इसकी वर्णनशैली बड़ी ही उदात्त और गम्भीर है ।

 

यदि आत्माके अज्ञान का कारण होने से आत्मज्ञान द्वारा कर्म का परित्याग कराना ही अभीष्ट है तो "कीचड़ को धोने की अपेक्षा तो उसे दूर से न छूना ही अच्छा है" इस उक्ति के अनुसार कर्म का आरम्भ न करना ही उत्तम है; क्योंकि वह अल्पफल वाला और अधिक परिश्रमवाला है तथा आत्यन्तिक कल्याण तत्वविज्ञान से ही होता है।

 

अकेला या कर्म के साथ मिला हुआ होने पर भी प्राणादि विज्ञान सकाम पुरुष के लिये तो प्राणत्व-प्राप्ति का ही कारण होता है, किंतु निष्काम पुरुष के लिये वह दर्पण के मार्जन के समान आत्मज्ञान के प्रतिबन्धकों का निवर्तक होता है। हाँ, जिसे आत्मज्ञान प्राप्त हो गया है, उसके लिये निष्प्रयोजन होने के कारण कर्म के आरम्भ की अपेक्षा नहीं है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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