Mandukya-Upanishad-Gita-Press-Hindi-Book-PDF


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माण्डूक्योपनिषद हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mandukya Upanishad Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : माण्डूक्योपनिषद | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 450 MB है | इस पुस्तक में कुल 308 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "माण्डूक्योपनिषद" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Mandukya Upanishad | Author/Editor of this book is : Gita Press, Gorakhpur | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 450 MB approximately. This book has a total of 308 pages. Download link of the book "Mandukya Upanishad" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेस, गोरखपुरधर्म, उपनिषद450 MB308



पुस्तक से : 

माण्डूक्योपनिषद् अथर्ववेदीय ब्राह्मणभाग के अन्तर्गत है । इसमें कुल बारह मन्त्र हैं । कलेवर की दृष्टि से पहली दश उपनिषदों में यह सबसे छोटी है। किन्तु इसका महत्त्व किसी से कम नहीं है। भगवान् गौडपादाचार्य ने इसपर कारिकाएँ लिखकर इसका महत्व और भी बढ़ा दिया है। कारिका और शांकर भाष्य के सहित यह उपनिषद् अद्वैतसिद्धान्त रसिकों के लिये परम आदरणीया हो गयी है।

 

माण्डूक्योपनिषद् में ओंकारकी तीन मात्रा अ उ म के द्वारा स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीर के अभिमानी विश्व, तैजस और प्राश का वर्णन करते हुए उनका समष्टि- अभिमानी वैश्वानर, हिरण्यगर्भ एवं ईश्वर के साथ अभेद किया गया है। इनकी अभिव्यक्ति की अवस्थाएँ क्रमशः जाग्रत् स्वप्न और सुपुप्ति हैं तथा इनके भोग स्थूल सूक्ष्म और आनन्द हैं। जाग्रत् अवस्था में जीव दक्षिण नेत्र में रहता है, स्वप्नावस्था में कण्ठ में और सुषुप्ति के समय हृदय में रहता है। इसी का नाम प्रपञ्च है।

 

गौडपादीय कारिकाओं को अद्वैतसिद्धान्त का प्रथम निबन्ध कहा जा सकता है। इसी ग्रन्थरत्न के आधार पर भगवान् शंकराचार्य ने अद्वैत मन्दिर की स्थापना की थी । यों तो अद्वैत सिद्धान्त अनादि है, किन्तु उसे जो साम्प्रदायिक मतवाद का रूप प्राप्त हुआ है उसका प्रधान श्रेय आचार्यप्रवर भगवान् शङ्कर को और उसका मूल ग्रन्थ गौडपादीय कारिका है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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