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मारवाड़ी भजन सागर हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Marwadi Bhajan Sagar Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मारवाड़ी भजन सागर | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: रघुनाथ प्रसाद सिंघानिया | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, कलकत्ता | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 21 MB है | इस पुस्तक में कुल 792 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मारवाड़ी भजन सागर" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Marwadi Bhajan Sagar | Author/Editor of this book is : Raghunath Prasad Singhaniya | This book is published by : Rajasthan Research Society, Calcutta | PDF file of this book is of size 21 MB approximately. This book has a total of 792 pages. Download link of the book "Marwadi Bhajan Sagar" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
रघुनाथप्रसाद सिंघानियाभक्ति, भजन, काव्य21 MB792



पुस्तक से : 

साहित्य मानव जीवन को उच्च शिखर पर पहुंचाता है। साहित्य से ही जातियोंकी श्रेष्ठता मानी जाती है। साहित्य मनुष्य को इस लोकसे लेकर परलोक तक का अनुभव करा देता है । साहित्य ने ही आर्यजाति का महत्व संसारको समझाया है। यदि हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों और त्रिकालज्ञ योगियों ने वेद, दर्शन, पुराण और उपनिषदादि शास्त्रों का निर्माण न किया होता, तो आज संसारकी सभ्य कही जानेवाली जातियाँ कभी भी परतंत्र भारतको श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखतीं।

 

राजस्थान को भी साहित्य ने ही इतना ऊँचा उठाया था। वहाँ के साहित्य ने ही वहाँ के जीवन को आदर्श बनाया था । साहित्य ने ही वहाँ वीरों में वीरता का, सतियोंमें सतीत्व का, क्षत्रियों में क्षात्र धर्मका, वैश्यों में दानशीलता का तथा प्रजा में कर्त्तव्य परायणता का मंत्र फूंका था। वहाँके चरणों, भाटों और बारहठों ने देश को कर्त्तव्य-परायण, समृद्धिशाली, स्वतंत्रता का पुजारी बनाने के लिये ही देवी भारती का आह्वान किया था ।

 

जिस राजस्थान में वीरता, निर्भीकता और सत्यता की पताका सैकड़ों वर्षों तक आकाश में फहराती रही है, उसके इतिहास में साहित्योन्नति का पृष्ठ भी कोरा नहीं, वरन् सुवर्णाक्षरों में लिखा जाने योग्य है। जिस देशका इतिहास इतना उज्ज्वल और भारतीय मात्र के गौरव कर सकने लायक गाथाओं से भरा हो, वहाँ साहित्य पनपा ही नहीं, यह असम्भव है। परन्तु दुःख तो इस बातका है कि राजस्थानियों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया, यदि वे इस ओर जरा ध्यान देते तो देखते कि वे अपने चमकते हुए रत्नों को चाहे जहां रखकर विद्वानों में चकाचौंध उत्पन्न कर सकते हैं।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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