Saundarya-Darshan-Vimarsh-Hindi-Book-PDF


सौंदर्य दर्शन विमर्श हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Saundarya Darshan Vimarsh Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : सौंदर्य दर्शन विमर्श | इस ग्रंथ के मूल रचनाकार हैं : गोविन्द चंद्र पाण्डेय | इस ग्रन्थ के संपादक/अनुवादक है: जगन्नाथ पाठक | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : राका प्रकाशन, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 257 MB है | इस पुस्तक में कुल 168 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "सौंदर्य दर्शन विमर्श" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of this book is : Saundarya Darshan Vimarsh | This book is originally composed by : Govind Chandra Pandey | Editor of this book is : Jagannath Pathak | This book is published by : Raka Prakashan, Prayagraj | PDF file of this book is of size 257 MB approximately. This book has a total of 168 pages. Download link of the book "Saundarya Darshan Vimarsh" has been given further on this page from where you can download it for free.


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जगन्नाथ पाठकसाहित्य257 MB168



पुस्तक से : 

प्रथम कारिका में 'सौन्दर्य' को एक 'विलक्षण अर्थ' बताते हुए आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डे जी उससे आनन्द के अनुभव की बात करते हैं तथा उसकी उपलब्धि के तीन स्रोतों की चर्चा करते हैं- एक तो सभी कलाएं, जैसे संगीत, चित्र आदि, दूसरे काव्य । आचार्य ने यहाँ स्पष्ट ही काव्य को भी इस सन्दर्भ में कलाओं का सजातीय माना है। और तीसरा प्राकृतिक दृश्य जैसे सूर्य या चन्द्र के उदय आदि.

 

आचार्य ने यहाँ सौन्दर्य को 'चमत्कारापरपर्याय' कहा है। लगता है कि इसके उल्लेख के समय आचार्य के मन में रसगङ्गाधरकार की यह पंक्ति स्मृतिगोचर रही होगी, जिसे पण्डितराज जगन्नाथ ने अपने काव्य लक्षण “रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्" की व्याख्या करते हुए प्रस्तुत की है। 'रमणीयता च लोकोत्तराह्लाद जनकज्ञानगोचरता, लोकोत्तरत्वञ्च आह्लादगतश्चमत्कारत्वापरपर्यायोऽनुभवसाक्षिको जातिविशेषः।' 'चमत्कार' शब्द पर विशेष चर्चा, आगे यथास्थान होगी।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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