Saundarya-Shastra-Aur-Kavi-Prasiddhiyan-Hindi-Book-PDF

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सौन्दर्य शास्त्र और कवि प्रसिद्धियां हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Saundarya Shastra Aur Kavi Prasiddhiyan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : सौन्दर्य शास्त्र और कवि प्रसिद्धियां | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ हरि मोहन | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : आर्याना पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली| इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 313 MB है | इस पुस्तक में कुल 208 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "सौन्दर्य शास्त्र और कवि प्रसिद्धियां" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Saundarya Shastra Aur Kavi Prasiddhiyan | Author/Editor of this book is : Dr Hari Mohan | This book is published by : Aaryana Publishing House, New Delhi | PDF file of this book is of size 313 MB approximately. This book has a total of 208 pages. Download link of the book "Saundarya Shastra Aur Kavi Prasiddhiyan" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ हरि मोहनसाहित्य, काव्य313 MB208



पुस्तक से : 

इस अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति अपनाई गई है। सिद्धान्त रूप में सौन्दर्य शास्त्र का विषय क्षेत्र, काव्यशास्त्र से सम्बन्ध, विज्ञान और शास्त्र में दृष्टि भेद और कवि-प्रसिद्धियों के आधारों की चर्चा की गई है फिर सौन्दर्य का स्वरूप और उसके तत्त्वों पर विचार किया है। कविप्रसिद्धि का स्वरूप, प्रवृत्तियां और वर्गीकरण के पश्चात् आधुनिक हिन्दी कवियों के काव्यों में यथासम्भव सभी कविप्रसिद्धियों की खोज करके उनको वर्गीकृत रूप में व्यवस्थित किया गया है।

 

हम भारतीय काव्यशास्त्र की पूरी परम्परा का अवगाहन करें तो यह तथ्य स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि हमारे आचार्य काव्य शास्त्र के वाह्यांग निरूपण तक ही सीमित नहीं रहे, वरन् उनकी गवेषणा काव्य की आत्मा की ओर निरन्तर चलती रही और सब स्थितियों में उनकी दृष्टि 'सौन्दर्य' पर टिकी रही। यह 'सौन्दर्य' चारुत्व, रमणीयता, विच्छिति, शोभा, चमत्कार, वैचित्र्य, वत्रता, कांति, लावण्य, आदि विभिन्न अधिनामों से मिलता है, और चाहे वह अलंकार सिद्धान्त हो, चाहे रीति सिद्धान्त; चाहे ध्वनि सिद्धान्त हो, या रस सिद्धान्त; वक्रोकित हो, चाहे औचित्य सिद्धान्त सर्वत्र विद्यमान मिलेगा।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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