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शिव महिम्न स्तोत्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shiv Mahimna Stotra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : शिव महिम्न स्तोत्र (शिव ताण्डव सहित)| इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: अज्ञात | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री दुर्गा पुस्तक भंडार, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 12 MB है | इस पुस्तक में कुल 38 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "शिव महिम्न स्तोत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shiv Mahimna Stotra (Shiv Tandav Sahita) | Author/Editor of this book is : Unknown | This book is published by : Shri Durga Pustak Bhandar, Prayagaraj | PDF file of this book is of size 12 MB approximately. This book has a total of 38 pages. Download link of the book "Shiv Mahimna Stotra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अज्ञातधर्म, भक्ति12 MB38



पुस्तक से : 

हे हर ! (आप सब दुःखों को हरण करते हैं अतः हर हैं) अर्थात् हम संकटग्रस्तों के संकट हटाने में आपको दूसरा व्यापार नहीं करना होगा, आपका नाम ही हर है । हे शम्भो ! आपकी महिमा की अन्तिम सीमा (अर्थात् आप इतने बड़े हैं, यह स्वरूप है, यह महिमा है आदि) को न जानने वाला जो स्तुति करता है, वह स्तुति यदि उचित (उत्तम) नहीं है तो ब्रह्मा आदि सर्वज्ञों से की गयी स्तुतियाँ भी आपके योग्य नहीं हैं ।

 

हे हर ! आपकी सगुण तथा निर्गुण महिमा वाणी एवं मन का विषय नहीं है. वेद भी कहता है कि मन सहित वाणी आदि सभी उस परमात्मा को न पाकर लौट आते हैं (यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह) जिस महिमा का वर्णन वेद भी चकित-सा होकर करता है। (अट्ठयावृत्या) अर्थात् श्रुति (वेद) सगुण निर्गुण दोनों का वर्णन करते हुए यकित हो जाती है। जैसे सगुण का जगत् से अभेद तथा निर्गुरंग का स्वप्रकाश वर्णन आदि।

 

हे त्रिपुहर ! रावण ने जो आपके चरणकमलों में अपने नौ मस्तक रूप कमलपुष्प की श्रेणी (पंक्ति) को उपहार में चढ़ा दिया था, उसके उसी निश्चल भक्ति का यह प्रभाव है कि तीनों लोकमें उसके वैर का कारण भी कोई नहीं रह सका। अर्थात् अपने पराक्रम से इन्द्र, कुबेर आदि को भी जीत लिया था । और रण (युद्ध) के लिए बराबर खुजला जाने वाली 20  भुजाओं को धारण किया था अर्थात् कोई उससे लड़नेवाला नहीं था । यह सभी आपकी भक्ति का ही फल है ।।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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