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श्रीमद देवी भागवत पुराण ग्रन्थ के बारे में अधिक विवरण | More details about Shrimad Devi Bhagwat Puran Book



इस ग्रन्थ का नाम है : श्रीमद देवी भागवत पुराण | इस ग्रन्थ के मूल रचइता है : महर्षि वेदव्यास | इस ग्रन्थ के संपादक है: राधेश्याम खेमका | इस ग्रन्थ के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस ग्रन्थ की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 95 MB है | इस पुस्तक में कुल 1762 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्रीमद देवी भागवत पुराण" ग्रन्थ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shrimad Devi Bhagwat Puran | This Granth is originally written by : Maharshi Vedvyas | Editor of the book is : Radheshyam Khemka | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 95 MB approximately. This book has a total of 1762 pages. Download link of the book "Shrimad Devi Bhagwat Puran" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
राधेश्याम खेमकाधर्म, भक्ति, पुराण95 MB1762



पुस्तक से : 

पुराणवाङ्मयमें 'श्रीमद्देवी भागवतमहापुराण' का अत्यन्त महिमामय स्थान है। पुराणों की परिगणना में वेदतुल्य, पवित्र और सभी लक्षणोंसे युक्त यह पुराण पाँचवाँ है। शक्तिके उपासक इस पुराण को 'शाक्तभागवत' कहते हैं। इस ग्रन्थके आदि, मध्य और अन्तमें– सर्वत्र भगवती आद्याशक्ति की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। इस पुराण में मुख्य रूप से परब्रह्म परमात्मा के मातृरूप और उनकी उपासना का वर्णन है।

 

संसार में सभी प्राणियों के लिये मातृभाव की महती महिमा है। मानव अपनी सबसे अधिक श्रद्धा स्वाभाविक रूप से माता के ही चरणों में अर्पित करता है; क्योंकि सर्वप्रथम माता की ही गोद में उसे लोक दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, इसलिये माता ही सभी प्राणियों की आदिगुरु के रूप में प्रतिष्ठित है। उसकी करुणा और कृपा बालकों के लौकिक तथा पारलौकिक कल्याण का आधार है; इसीलिये 'मातृदेवो भव पितृदेवो भव आचार्यदेवो भव' – इन श्रुतिवाक्यों में सबसे पहले माता का ही स्थान है।

 

'श्रीमद्देवीभागवतपुराण' के श्रवण और पठनसे स्वाभाविक ही पुण्यलाभ तथा अन्तःकरण की परिशुद्धि, पराम्बा भगवतीमें रति और विषयों में विरति तो होती ही है, साथ ही मनुष्योंको ऐहिक और पारलौकिक हानि-लाभ का यथार्थ ज्ञान भी हो जाता है, तदनुसार जीवन में कर्तव्य का निश्चय करनेकी अनुभूत शिक्षा मिलती है, साथ ही जो जिज्ञासु शास्त्र मर्यादा के अनुसार अपना जीवनयापन करना चाहते हैं, उन्हें इस पुराणसे कल्याणकारी ज्ञान, साधन, सुन्दर एवं पवित्र जीवनयापन की शिक्षा भी प्राप्त होती है।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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