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वक्रोक्ति जीवितम् हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vakrokti Jeevitam Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : वक्रोक्ति जीवितम् | इस ग्रन्थ के मूल रचनाकार हैं : कुंतक | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: श्री राधेश्याम मिश्र | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्भा संस्कृत संस्थान, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 935 MB है | इस पुस्तक में कुल 540 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वक्रोक्ति जीवितम्" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Vakrokti Jeevitam | This book is originally composed by : Kuntak | Editor of this book is : Shri Radheshyam Mishra | This book is published by : Chaukhambha Sanskrit Sansthan, Varanasi | PDF file of this book is of size 935 MB approximately. This book has a total of 540 pages. Download link of the book "Vakrokti Jeevitam" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री राधेश्याम मिश्रसाहित्य, काव्य935 MB540



पुस्तक से : 

जिनका भक्षण कर लेने से शब्द करते हुए हंसी के कूजन में मधुर कण्ठ में के संयोग से घर पर ध्वनियुक्त कोई विलक्षण ही विलास उत्पन्न हो जाता है, हथिनी के कोमल (तुरन्त निकले हुए) दन्ताङ्कुरों से होड़ लगानेवाली चे मृणालतन्तु की अग्रिम (नयी-नयी) ग्रन्थियाँ इस समय सरोवरों में आविर्भूत हो गयी हैं ।

 

(कुमारसम्भव में कपटवटुवेषधारी भगवान् शङ्कर द्वारा पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शङ्कर की निन्दा करते समय पार्वती को अपनी सखी से यह कथन कि) हे सखि ! इस वाचाट को रोको (क्योंकि) स्फुरित होते हुए होठों वाला यह फिर से कुछ कहने की इच्छा कर रहा है (क्योंकि) जो महापुरुषों की निन्दा करता है केवल वह ही नहीं ( अपितु ) जो उससे उस निन्दा को सुनता है वह पाप का भाजन बनता है ।।

 

(गरम) सांसों के चलने के कारण धूमिल पड़ गए हुए अधर के कान्तिवाली इसकी भुजाओं के कन्दली की कृशता के कारण कंकणों के द्वारा बाजूबन्द की तरह का आचरण किया गया है और कपोल की कान्ति के द्वारा सफेदी में परिणत किया गया है, और तो और, उसके नेत्र कमलों के युगल के द्वारा अत्यधिक आंसू बहाने के कारण कोरों पर इतनी तेज अरुणिमा उत्पन्न करा दी गई कि जिसके कारण काम अत्यधिक ताप वाला हो उठा.

 

इस विशाल नयनों वाली (नायिका) की रमणीय वस्तुशोभा आँखों के अन्दर कुछ मीठा-मीठा भर सा देती है और कानों के पास कुछ अश्रुत- पूर्व मीठी बातें बोल सी जाती है और प्रेम से अलसाये मन भीतर ही कुछ मधुर (भाव) उत्कीर्ण सा कर देती है ।

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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Download PDF (935 MB)


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