Vijayeshvar-Nitya-Niyam-Vidhi-Hindi-Book-PDF


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विजयेश्वर नित्य नियम विधि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vijayeshvar Nitya Niyam Vidhi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : विजयेश्वर नित्य नियम विधि | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: ओमकार नाथ शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : विजयेश्वर पंचांग कार्यालय | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 62 MB है | इस पुस्तक में कुल 258 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "विजयेश्वर नित्य नियम विधि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Vijayeshvar Nitya Niyam Vidhi | Author/Editor of this book is : Omkar Nath Shastri | This book is published by : Vijayeshvar Panchang Karyalaya | PDF file of this book is of size 62 MB approximately. This book has a total of 258 pages. Download link of the book "Vijayeshvar Nitya Niyam Vidhi" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
ओमकार नाथ शास्त्रीधर्म, भक्ति62 MB258



पुस्तक से : 

शास्त्रानुसार प्रत्येक मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं देव ॠण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण. नित्य कर्म करने से मनुष्य तीनों प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता है "यत्कृत्वा नृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मानुषात् " अर्थात जो व्यक्ति भक्ति तथा श्रद्धापूर्वक जीवनपर्यन्त प्रतिदिन नित्यकर्म, स्नान, सन्ध्या, जप इत्यादि करता है उसे परमानन्द की अनुभूति होती है तथा उस का जीवन सफल हो जाता है तथा वह इन तीन ऋणों से मुक्त हो जाता है।

 

धर्म, संस्कृति का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। वस्तुतः यह आधार भूमि है जिस पर संस्कृति का विविध आयामी भवन अपने पूरे वैभव के साथ खड़ा रहकर प्रतिष्ठापूर्वक राष्ट्र गौरव का प्रतीक बन जाता है। धर्म यदि प्रकाश स्तम्भ है तो संस्कृति उस की पहचान है।

 

कवि सम्राट कालिदास ने भी कहा है 'स्तोत्रं कस्ये न तुष्टये' अर्थात् संसार में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो स्तुति पाठ, नित्यकर्म से शुभ फल प्राप्त करता नहीं है। स्तोत्रों को यदि देखा जाये तो हज़ारों की संख्या में स्तोत्र हैं परन्तु समयानुसर पूरी स्थिति को ध्यान में रखते हुए मैंने वही स्तोत्र तथा पाठ इत्यादि इस संग्रह में रखे हैं जो एक व्यक्ति को समकालीन जीवन के अनुरूप हैं तथा वह स्तोत्र फिर से जीवित करने का प्रयास किया है जो मृतप्राय हैं तथा जिनकी प्रथा कश्मीरी समाज में अधिक थी.

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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